नई दिल्ली: प्रतिकूल मौसमी परिघटनाएं मानव जीवन को व्यापक स्तर पर प्रभावित कर रही हैं। पिछले कुछ समय से ऐसी मौसमी परिघटनाओं की आवृत्ति एवं तीव्रता में वृद्धि देखी जा रही है। भारत में ग्रीष्म लहर यानी गर्म हवाओं के थपेड़ों का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है। एक हालिया अध्ययन के अनुसार भारत के उत्तर-पश्चिमी, मध्य और दक्षिण मध्य क्षेत्र विगत पांच दशकों में ग्रीष्म लहर के मुख्य बिंदु बने हैं। वैज्ञानिक भाषा में इन स्थानों हो ग्रीष्म लहर हॉटस्पॉट की संज्ञा दी जाती है। इस अध्ययन में दर्शाया गया है कि ये ग्रीष्म लहर स्थानीय निवासियों की सेहत और उनसे संबंधित गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं। ऐसे में उनसे निपटने के लिए एक उपयुक्त कार्ययोजना यानी एक्शन प्लान बनाना समय की आवश्यकता हो गई है। अध्ययन में इस समस्या के समाधान पर भी विस्तार से प्रकाश डाला गया है।
ग्रीष्म लहर ने मानवीय स्वास्थ्य, कृषि, अर्थव्यवस्था और अवसंरचनाढांचे पर गंभीर प्रभाव डाला है। इन परिस्थितियों को देखते हुए इस मोर्चे पर तत्काल नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है। इसके लिए ग्रीष्म लहर के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों को चिह्नित करना अत्यंत आवश्यक है। उन्हें चिह्नित कर और उनसे जुड़ी इस समस्या के मूल को समझकर ही कोई कारगर समाधान तलाशने की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। यह शोध-अध्ययन इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी वक्तव्य के अनुसार, यह शोध भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के प्रो. आर. के. माल के नेतृत्व में किया गया है। इसमें सौम्या सिंह और निधि सिंह सहित काशी हिंदू विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन के अनुसंधान के लिए महामना उत्कृष्टता केंद्र (एमसीईसीसीआर) ने पिछले सात दशकों में भारत के विभिन्न मौसम संबंधी उपखंडों में ग्रीष्म लहर और गंभीर ग्रीष्म लहर में स्थानिक और अस्थायी प्रवृत्तियों में परिवर्तन का अध्ययन किया। साथ ही, इसमें ग्रीष्म लहर और गंभीर ग्रीष्म लहर से भारत में मृत्यु दर की कड़ियों को भी जोड़ा गया है। इस कार्य के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम के अंतर्गत सहयोग दिया गया है। इस शोध का प्रकाशन “इंटरनेशनल जर्नल ऑफ क्लाइमेटोलॉजी” में हुआ है।
इस अध्ययन में पश्चिम बंगाल और बिहार के गांगेय क्षेत्र से पूर्वी क्षेत्र से उत्तर-पश्चिमी, मध्य और आगे भारत के दक्षिण-मध्य क्षेत्र में ग्रीष्म लहरकी घटनाओं की स्थानिक-सामयिक प्रवृत्ति में परिवर्तन दर्शाया गया है। इसमें दक्षिण की ओर खतरनाक विस्तार और एसएचडब्ल्यू घटनाओं में स्थानिक वृद्धि देखी गई है जो पहले से ही कम दैनिक तापमान रेंज (डीटीआर) या अंतर के बीच की विशेषता वाले क्षेत्र में अधिकतम और न्यूनतम तापमान के कारण किसी दिन विशेष में उच्च आर्द्रता वाली गर्मी के अतिरिक्त एक बड़ी आबादी को कई प्रकार के जोखिम में डाल सकती है।ऐसी घटनाओं के दृष्टिकोण से ओडिशा और आंध्र प्रदेश में मृत्यु दर के साथ सकारात्मक रूप से सह-संबद्ध पाया गया है। इससे स्पष्ट है कि मानव स्वास्थ्य गंभीर ग्रीष्म लहर आपदाओं के लिहाज से अति-संवेदनशील है। इस अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि अत्यधिक तापमान की लगातार बढ़ती सीमा के साथ, गर्मी कम करने के उपाय समय की आवश्यकता हैं। यह अध्ययन समीक्षाधीन तीन ग्रीष्म लहर हॉटस्पॉट क्षेत्रों में प्रभावी ग्रीष्म नियंत्रण कार्य योजना विकसित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। (इंडिया साइंस वायर)