नई दिल्ली, 26 नवंबर (इंडिया साइंस वायर): विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) के अनुसारहर साल जलने की घटनाओं के दस लाख से अधिक मामलों में विशेष उपचार की आवश्यकता होती है। घाव से प्रभावित क्षतिग्रस्त त्वचा को शल्य चिकित्सा द्वारा हटाकर और त्वचा के प्रत्यारोपण के साथ इसे पुनः निर्मित कर गहन जलने की चोटों का इलाज किया जाता है। पारंपरिक प्रतिस्थापन पदार्थों में सभी प्रकार की त्वचा कोशिकाएं नहीं होती हैं और दूसरों से लेकर प्रत्यारोपित त्वचा को अक्सर प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा खारिज कर दिया जाता है।
श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज ऐंड टेक्नोलॉजी, तिरुवनंतपुरम के शोधकर्ताओं ने एकऐसासॉल्यूशन खोजा है, जिसमें 3डी बायोप्रिंटिंग का उपयोग करके त्वचा के ऊतकों का पुनर्निर्माण किया जा सकता है। शोधकर्ताओं को एक गैर-विषैले अस्थाई बहुलक ढांचे के भीतर त्वचा कोशिकाओं के साथ ऊतक निर्माण करने में सफलता मिली है। 3डी बायोप्रिंटिंग में उपयुक्त पॉलीमर-आधारित बायोइंक का उपयोग करके मचान में सेल लेयर आर्किटेक्चर को डिजाइन किया गया है, जो बायोप्रिंटेड ऊतक की सरंध्रता और चिपकने को नियंत्रित करता है।
बायोइंक तैयार करने के लिए, डायथाइलामिनोइथाइल सेलुलोज को पाउडर के रूप में, एक स्थिर प्राकृतिक बहुलक, एल्गिनेट के घोल में फैलाया गया है।यह सॉल्यूशन कोशिकाओं को एक-दूसरे से जोड़ने वाले जिलेटिन घोल के साथ मिलाया गया है। बायोइंक का उपयोग रोगी के फाइब्रोब्लास्ट, एपिडर्मल केराटिनोसाइट्स, और त्वचा ऊतकों में पाये जाने वाली कोशिकाओं को कैप्सूलीकृत करने के लिए किया गया है।
शोधकर्ताओं ने त्वचा के ऊतकों को परत दर परत बायोप्रिंट किया है। इसके आधार पर, बायोइंक से कैप्सूलीकृत फाइब्रोब्लास्ट को छह परतों में मुद्रित किया गया है और तीन स्टैक के रूप में व्यवस्थित किया गया है। इसके शीर्ष पर, उन्होंने बायोइंक-कैप्सूलीकृत केराटिनोसाइट्स की दो परतों के एक एकल स्टैक को बायोप्रिंट किया है। इस संरचना को एक उपयुक्त माध्यम में कल्चर किया गया है।
इस अध्ययन से जुड़ीं शोधकर्ता लक्ष्मी टी. सोमशेखरन कहती हैं, ‘बायोप्रिंटेड त्वचा ने सूक्ष्म और मैक्रो-आकार के छिद्रों के साथ छिद्र संरचना को बेहतर ढंग से नियंत्रित किया है, जो पारंपरिक तरीकों से संभव नहीं है।’
ये सूक्ष्म और स्थूल आकार के छिद्र पूरे निर्माण के दौरान प्रभावी सेल घुसपैठ एवं प्रवास में मदद करते हैं और ऑक्सीजन तथा पोषक तत्वों के परिवहन को बढ़ावा देते हैं। अध्ययन में शामिल एक अन्य शोधकर्ता नरेश कासोजू कहते हैं, “जलीय माध्यम के संपर्क में आने पर, बायोप्रिंटेड संरचना में ज्यादा फुलाव नहीं देखा गया है और भौतिक आकृति एवं आकार भी यथावत थे, जो बायोइंक के बेहतर गुणों को दर्शाता है।”
बायोइंक-निर्मित त्वचा में कोशिकाएं 21 दिनों के बाद भी जीवित थीं। ये त्वचा कोशिकाएं हिस्टोलॉजिकल रूप से आवश्यक विशेषताओं को बनाए रखने में सक्षम थीं, और इनमें एपिडर्मल/त्वचीय मार्करों की अभिव्यक्ति देखी गई है। इसके अलावा, त्वचा के ऊतकों के बायो-फाइब्रिकेशन के लिए उपयोग किए जाने वाले हाइड्रोजेल में भी रक्त के संपर्क में आने पर कोई प्रतिकूल प्रतिक्रिया नहीं देखी गई है।
इस संबंध में शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित जानकारी के मुताबिक 3डी प्रिंटेड त्वचा के लिए कच्चा माल कम कीमत पर आसानी से उपलब्ध है। 3डी प्रिंटेड त्वचा, मूल ऊतक संरचना और उसकी कार्यक्षमता की नकल करने में सक्षम है, जिससे इस विधि को त्वचा के समकक्ष ऊतक विकसित करने में उपयोग किया जा सकता है। श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज ऐंड टेक्नोलॉजी की शोधकर्ता अनुज्ञा भट्ट कहती हैं, ‘इसे प्रत्यारोपित होने पर मूल ऊतक के साथ एकीकृत किया जा सकता है।’यह अध्ययन शोध पत्रिका इंटरनेशनल जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल मैक्रोमोलेक्यूल्स में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)