नई दिल्ली, (इंडिया साइंस वायर):आज महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में अपनी लगन और मेहनत से शिखर छऊ रही हैं। विज्ञान का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा है। साधारणतया यही माना जाता रहा है कि विज्ञान पुरुषों के वर्चस्व वाला क्षेत्र है और महिलाएं महज कला,संस्कृति और अन्य मानविकी विषयों में ही महारत हासिल कर पाती हैं। परंतु,विज्ञान के प्रति अपनी ललक औरप्रतिबद्धता से अनेकमहिलावैज्ञानिकों ने इन वर्जनाओं को तोड़कर एक मिसाल कायम की है। आज ये महिला वैज्ञानिक हमारे देश के मिसाइल कार्यक्रम से लेकर अंतरिक्ष अभियानों, दवाओं के विकास से लेकर सुदूर अन्वेषण जैसे मोर्चों पर सफलता की नई गाथा लिखते हुए देश की प्रगति में अपना अहम योगदान दे रही हैं। वे प्रकृति को संरक्षित रखने के उपाय सुझाने से लेकर ब्रह्मांड की गुत्थियां सुलझाने में पूरे मनोयोग से जुटी हैं। विज्ञान के क्षेत्र में ऊंची उड़ान भरने वाली ऐसी हीकुछ प्रेरक महिलाओं से हम आपका परिचय कराने जा रहे हैं।
1.टेसी थॉमस- अबुल पाकिर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम यानी एपीजे अब्दुल कलाम के नाम से भला कौन अनजान
होगा। देश को परमाणु शक्ति संपन्न बनाने से लेकर देसी मिसाइल कार्यक्रम को निर्णायक मोड़ देने वाले ‘मिसाइल-मैन’ कलाम युवाओं के आदर्श माने जाते हैं। यही करिश्मा महिला वैज्ञानिकों में टेसी थॉमस ने करके दिखाया है, जिन्हें भारत की ‘मिसाइल-वुमन‘ का खिताब मिल चुका है। कलाम तमिलनाडु से संबंध रखते थे, तो थॉमस भी उनके पड़ोसी राज्य केरल से नाता रखती हैं। टेसी थॉमस का जन्म 1963 में केरल के अलपुजा में हुआ था। वर्तमान में वह वैमानिकी प्रणालियों की महानिदेशक हैं। वह रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) में अग्नि- IV मिसाइल की परियोजना निदेशक भी रह चुकी हैं। भारत में मिसाइल परियोजना का नेतृत्व करने वाली वह पहली महिला वैज्ञानिक हैं। पिछले तीन दशकों से मिसाइल गाइडेंस पर काम कर रही टेसी इस विषय में डॉक्टरेट हैं। डीआरडीओ में मार्गदर्शन, सिमुलेशन और मिशन डिजाइन में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। इसके अतिरिक्त अग्नि मिसाइलों में उपयोग होने वाले मार्गदर्शन योजना को तैयार करने में भी उन्होंने अपनी भूमिका निभायी है। वर्ष2001 में अग्नि आत्मनिर्भरता पुरस्कार से सम्मानित टेसीकई फेलोशिप और मानद डॉक्टरेट की प्राप्तकर्ता हैं। उन्हें इस बात का विशेष रूप से श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने मिसाइल तकनीक जैसे विशुद्ध रूप से पुरुषों के दबदबे वाले कार्यक्षेत्र में अपनी क्षमताओं का लोहा मनवाया और एक नई परंपरा की प्रवर्तक बनीं।
2.रितु करिधल-‘रॉकेट वुमन ऑफ इंडिया’ के नाम से प्रसिद्ध रितु करिधल ने भारत की सबसे महत्वाकांक्षी चन्द्र परियोजना चंद्रयान-2 में मिशन निदेशक के रूप में अपनी भूमिका निभायी। वर्ष 2007 से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में कार्यरत रितु भारत के मार्स ऑर्बिटर मिशन- मंगलयान की उप-संचालन निदेशक भी रहीं। 13 अप्रैल 1975 को लखनऊ के एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मीं एयरोस्पेस इंजीनियर रितु ने लखनऊ विश्वविद्यालय से भौतिकी में बीएससी कर भारतीय विज्ञान संस्थान से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में एमई की डिग्री प्राप्त की है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने वर्ष 2007 में रितु करिधल को इसरो यंग साइंटिस्ट अवार्ड से सम्मानित किया था। गत वर्ष चंद्रयान मिशन के दौरान उनकी उपलब्धियों की चारों ओर चर्चा हो रही थी। उन्होंने अंतरिक्ष परियोजनाओं के लिए प्रभावी एवं किफायती तकनीकों क विकसित करने में अहम योगदान दिया है। लखनऊ विश्वविद्यालय के 2019 के वार्षिक दीक्षांत समारोह में उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया है।
3. मुथैया वनिता- करिधल की भांति मुथैया वनिता भी इसरो से जुड़ी रही हैं। वह चंद्रयान-2 की परियोजना निदेशक हैं। 2 अगस्त 1964 में जन्मीं वनिता मूल रूप से चेन्नई की निवासी हैं। इसरो में अंतर-मिशन मिशन का नेतृत्व करने वाली वह पहली महिला हैं। उन्हें मिशन के एसोसिएट निदेशक से परियोजना निदेशक तक पदोन्नत किया गया था। वह चेन्नई से हैं और उन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेज, गिंडी से इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। वनिता ने तीन दशक से अधिक समय तक इसरो में काम किया है। उन्होंने हार्डवेयर परीक्षण और विकास में एक कनिष्ठ अभियंता के रूप में शुरुआत की और सीढ़ी तेजी से तरक्की की ओर कदम बढ़ाए। उन्होंने इसरो सैटेलाइट सेंटर के डिजिटल सिस्टम ग्रुप में टेलीमेट्री और टेलकमांड डिवीजनों का नेतृत्व करने के लिए कई भूमिकाओं को निभाया और कार्टोसैट-1, ओशनसैट-2 और मेघा-ट्रॉपिक्स सहित कई उपग्रहों के लिए उप परियोजना निदेशक रही हैं। इससे पहले वह सुदूर संवेदन उपग्रहों के लिए डेटा ऑपरेशन भी प्रबंधित कर चुकी है। साल 2006 में, उन्हें सर्वश्रेष्ठ महिला वैज्ञानिक पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।
4.गगनदीप कांग- वायरोलॉजिस्ट और वैज्ञानिक गगनदीप कांग को भारत की ‘वैक्सीन गॉडमदर’ के रूप में ख्याति मिली है। 3 नवंबर 1962 को शिमला में जन्मीं गगनदीप विज्ञान में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने वाले विश्व के सबसे पुराने वैज्ञानिक संस्थान ‘वैज्ञानिक रॉयल सोसाइटी’ द्वारा फेलो के रूप में चुनी जाने वाली पहली भारतीय महिला वैज्ञानिक हैं। कांग ने 1990 के दशक में भारत में डायरिया जैसे रोगों और पब्लिक हेल्थ पर कार्य किया है। भारत में रोटावायरस महामारी पर शोध और उसके लिए बनायी गयी वैक्सीन में उनका सराहनीय योगदान है। रोटावायरस पर उनके द्वारा किये गए गहन शोध से देश में इस बीमारी की गंभीरता, वायरस की आनुवंशिक विविधता, संक्रमण और टीकों में बेहतरी को बल मिला है। गगनदीप को भारत में बच्चों में प्रवेश, विकास और एंटरिक संक्रमण और उनके सीक्वेल की रोकथाम के अंतःविषय अनुसंधान के लिए जाना जाता है। वह बच्चों में वायरल संक्रमण और रोटावायरल टीकों के परीक्षण पर एक अग्रणी शोधकर्ता भी हैं। रोटावायरस और अन्य संक्रामक रोगों के प्राकृतिक इतिहास को समझने में उनके योगदान के लिए उन्हें 2016 में लाइफ साइंस में प्रतिष्ठित इन्फोसिस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। गगनदीप ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (टीएचएसटीआई), फरीदाबाद के कार्यकारी निदेशक हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दक्षिण पूर्व-एशिया के टीकाकरण तकनीकी सलाहकार समूह के अध्यक्ष हैं। वह संक्रमण, आंत कार्य और शारीरिक और संज्ञानात्मक विकास के बीच जटिल संबंधों की भी जांच कर रही है, और भारत में एक मजबूत मानव इम्यूनोलॉजी अनुसंधान काढांचा विकसित करने की कोशिशों में जुटी हैं।
5. मंगला मणि- इसरो की ‘पोलर वुमन‘ नाम से प्रसिद्द मंगला मणि अंटार्कटिका के बर्फीले परिदृश्य में एक वर्ष से अधिक समय बिताने वाली पहली महिला वैज्ञानिक हैं। उल्लेखनीय है कि इस मिशन पर जाने से पहले उन्होंने कभी बर्फ़बारी का भी अनुभव नहीं किया था। अंटार्कटिका में भारत के अनुसन्धान स्टेशन भारती में इसरो के ग्राउंड स्टेशन के संचालन और अन्य कार्यों क लिए मंगला ने 403 दिन बिताये। 56 वर्ष की आयु में मंगला नवंबर 2016 में अंटार्कटिका जाने वाली 23 सदस्यीय टीम की एकमात्र महिला सदस्य रही थीं। वास्तव में अंटार्कटिका जैसे अभियानों को भी हमेशा से पुरुषों का क्षेत्र ही माना गया है, क्योंकि दक्षिणी ध्रुव जैसे अत्यंत दुरूह हालात में शारीरिक क्षमताएं पूरी कसौटी पर होती हैं, जिनमें महिलाओं को परंपरागत रूप से कमतर ही आंका गया है। ऐसे में मंगला मणि का अंटार्कटिका पर इतना लंबा प्रवास निश्चित रूप से एक अनुकरणीय उदाहरण है। स्टेशन संचालन से लेकर उनके तमाम अन्य शोध बहुत उपयोगी हैं। माना जाता है कि अंटार्कटिका में प्राकृतिक संसाधनों का भंडार हैं, जो अभी तक दुनिया की नजरों से छिपे हुए हैं। ऐसे में वहां
सबसे पहले कामयाबी हासिल करना किसी भी देश के लिए बढ़त की स्थिति होगी। रणनीतिगत मोर्चे पर इसे ‘फर्स्ट मूवर एडवांटेज‘ का नाम दिया जाता है। ऐसे में मंगला जैसी वैज्ञानिकों का योगदान भारत के विज्ञान के खजाने के लिए किसी मणि से कम नहीं।
6.कामाक्षी शिवरामकृष्णन- कामाक्षी शिवरामकृष्णन, एक प्रमुख प्रोग्राम-क्रॉस-डिवाइस विज्ञापन प्लेटफ़ॉर्म की संस्थापक और सीईओ हैं। कामाक्षी के नेतृत्व में ही ड्रॉब्रिज टीम ने सभी डिजिटल मीडिया के लिए एक समस्या को हल
किया है। मोबाइल उपकरणों पर विज्ञापन लेने की उनकी दृष्टि अद्भुत है। वह 2010 में एडमॉब (गूगल द्वारा अधिग्रहित उपक्रम) में मुख्य वैज्ञानिक थीं, परंतु अपना उपक्रम शुरू करने के मकसद से उन्होंने नई पहल के लिए उसे छोड़ना ही मुनासिब समझा, ताकि अपनी संकल्पनाओं और सपनों को साकार कर सकें। उनकी ड्राब्रिज टीम ने पहली मशीन-लर्निंग
विज्ञापन तकनीक विकसित की है जो विज्ञापनदाताओं और विपणनकर्ताओं को स्क्रीन पर लक्षित दर्शकों तक पहुंचने में सक्षम बनाने के लिए डिवाइस आईडी से अंतर्दृष्टि का लाभ उठाती है। ड्रॉब्रिज को प्रत्येक दिन बारह बिलियन से अधिक विज्ञापन अनुरोध प्राप्त होते हैं, जिसने एक ट्रिलियन से अधिक अवलोकन किए हैं। इसके परिणामस्वरूप, अब तक एक बिलियन से अधिक डिवाइस बन चुके हैं। इस प्रकार वह तकनीकी मोर्चे पर अहम भूमिका निभा रही हैं। कामाक्षी ने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से सूचना थ्योरी और एल्गोरिदम में पीएचडी प्राप्त की, और 2014 में विज्ञापन आयु के “40 अंडर 40″, और साथ ही एक फाइनल के अर्नेस्ट एंड यंग एंटरप्रेन्योर का नाम दिया गया। उन्हें न्यू होराइजंस, नासा के सबसे दूर अंतरिक्ष मिशन, प्लूटो और बाहरी ग्रह प्रणाली पर काम करनेका अनूठा गौरव प्राप्त है।
7.चंद्रिमा शाह-14 अक्टूबर 1952 में जन्मीं चंद्रिमा एक जीवविज्ञानी और भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) की पहली महिला अध्यक्ष हैं। उन्होंने 1 जनवरी 2020 को पदभार ग्रहण किया। चंद्रिमा पहली बार 2008 में आईएनएसए के लिए चुनी गईं। वर्ष2016 और 2018 के बीच यहाँ पर उन्होंने उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वह कोशिका जीव विज्ञान में सिद्धहस्त हैं और ‘लीशमैनिया’ परजीवी के बारे में उन्होंने व्यापक शोध किया है जो ‘काला अजार’ का कारण बनता है। वह 80 से अधिक शोध पत्र भी लिख चुकी हैं। उन्हें आईसीएमआर के शकुंतला अमीरचंद पुरस्कार (1992) और डीएनए डबल हेलिक्स डिस्कवरी (50) की 50 वीं वर्षगांठ के लिए विशेष पुरस्कार ‘विभिन्न मॉडल जीवों में सेल डेथ प्रोसेस की समझ के लिए महत्वपूर्ण योगदान’ जैसे कई पुरस्कार मिले हैं।
एक वैज्ञानिक के रूप में उन्हें सामाजिक तौर पर संघर्ष करना पड़ा था। उनके करियर के शुरुआती दिनों में पुरुष सहकर्मियों द्वारा एक महिला वैज्ञानिक से हाथ मिलाना भी नजरअंदाज किया जाता था। इस बात ने उन्हें अकेले कार्य करने और स्वयं को स्थापित करने की प्रेरणा दी।
8.अदिति पंत- अदिति एकसमुद्र-विज्ञानी हैं,और अंटार्कटिका की यात्रा करने वाली पहली भारतीय महिला हैं, जिन्होंने 1983 के भारतीय अभियान के एक भाग के रूप में भूविज्ञान और समुद्र विज्ञान का अध्ययन किया था। एलिस्टर हार्डी की पुस्तक द ओपन सी से प्रेरित होकर, उन्होंने हवाई विश्वविद्यालय में अमेरिकी सरकार की छात्रवृत्ति के साथ समुद्री विज्ञान में एमएस किया। अदिति ने लंदन के वेस्टफील्ड कॉलेज में अपनी पीएचडी पूरी की और गोवा में राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान में शामिल होने के लिए भारत लौट आई। उन्होंने तटीय अध्ययन किया है और पूरे भारतीय पश्चिमी तट की यात्रा की है। वह राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, पुणे विश्वविद्यालय और महाराष्ट्र विज्ञान अकादमी सहित
संस्थानों में प्रमुख पदों पर रह चुकी हैं।
9.मंगला नार्लीकर-वर्ष 1946 में मुंबई में जन्मीं मंगला एक नामचीन भारतीय गणितज्ञ हैं। उन्होंनेपुणे विश्वविद्यालय और मुंबई विश्वविद्यालय में सरल अंकगणित और उन्नत गणित दोनों के क्षेत्र में काम किया है। वह देश की कुछ महिला गणित शोधकर्ताओं में से एक है जिन्होंने शादी के 16 साल बाद अपनी पीएचडी पूरी की। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में काम करने के बाद, मंगला ने अंग्रेजी और मराठी दोनों में गणितीय विषयों पर कई किताबें प्रकाशित कीं। उन्हें मराठी में उनकी एक पुस्तक के लिए विश्वनाथ पार्वती गोखले पुरस्कार 2002 से सम्मानित किया गया है। एक शिक्षक के रूप मेंवह लोकप्रिय इसलिए है क्यूंकि वह अपने छात्रों के लिए गणित को एक दिलचस्प विषय बनाती है। नार्लीकर के मुख्य क्षेत्र वास्तविक और जटिल विश्लेषण, विश्लेषणात्मक ज्यामिति, संख्या सिद्धांत, बीजगणित और टोपोलॉजी हैं। महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बनीं मंगला का मानना है कि उनके जीवन की कहानी कई अन्य महिलाओं के जीवन का प्रतिनिधित्व
करती है जो भली भांति शिक्षित होकर अपने व्यक्तिगत करियर से पूर्व पारिवारिक उत्तरदायित्व को महत्व देती हैं।