नई दिल्ली: भारत के महत्वाकांक्षी चंद्रयान-2 मिशन के बारे में केंद्र सरकार ने आधिकारिक रूप से बताया है कि इस मिशन के लिए तैयार जिस ऑर्बिटर की मियाद एक साल मानी जा रही थी, वह अब सात वर्षों तक सक्रिय रहकर काम करने में सक्षम हो सकता है। प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर के माध्यम से यह जानकारी दी है। उल्लेखनीय है कि भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम प्रधानमंत्री कार्यालय के नेतृत्व में ही संचालित होता है।
अपने उत्तर में डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि चंद्रयान-2 एक अत्यंत जटिल मिशन था। इस मिशन में चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग और रोविंग जैसी जटिल क्षमताओं का प्रदर्शन शामिल था। इस मिशन में आर्बिटर, लैंडर और रोवर की त्रि-स्तरीय भूमिका थी। इसरो ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा के लिए 22 जुलाई 2019 को इस अभियान का आगाज किया था। हालांकि, 07 सितंबर 2019 लैंडर विक्रम ने चंद्रमा पर हार्ड लैंडिंग की, और इसी के साथ चंद्रमा की सतह पर उतरने के भारत के पहले प्रयास पर पानी भर गया। इसी के साथ चांद की सतह को छूने की भारतीय हसरतें भी चकनाचूर हो गईं।
इस महत्वकांक्षी के बारे में कहा जा रहा है कि भले ही चंद्रयान-2 को अपेक्षित सफलता नहीं मिली हो, पर यह पूरी तरह से नाकाम नहीं रहा है। डॉ. सिंह ने बताया कि सॉफ्ट लैंडिंग के अतिरिक्त मिशन के तमाम लक्ष्य सफलतापूर्वक प्राप्त किए गए हैं। पहले जिस ऑर्बिटर के बारे में माना जा रहा था कि वह एक साल तक ही काम कर पाएगा, उसके बारे में अब कहा जा रहा है कि ऑर्बिटर सात वर्षों तक कार्य कर सकता है। इससे पहले वर्ष 2014 में मंगलयान मिशन के लिए भी जिस ऑर्बिटर को भेजा गया था, उसके बारे में भी यही अनुमान था कि वह छह महीनों तक कार्य कर पाएगा। लेकिन, वह अभी तक कार्य करते हुए तस्वीरें भेज रहा है। यह इसरो के वैज्ञानिकों की क्षमताओं को ही दर्शाता है कि वे बेहतरीन और टिकाऊ तकनीक विकसित करने में सक्षम हैं।
डॉ. सिंह ने कहा है कि चंद्रयान मिशन के अंतर्गत चाँद की स्थलाकृति, खनिज विज्ञान, सतह की रासायनिक संरचना और थर्मो-फिजिकल स्वरूप का अध्ययन किया जाएगा। इससे प्राप्त निष्कर्ष अंतरिक्ष-विज्ञानियों को चंद्रमा के व्यापक अध्ययन में मददगार होंगे। (इंडिया साइंस वायर)