नई दिल्ली (इंडिया साइंस वायर): आयुर्वेद दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धतियों में से एक है। भारत में विकसित हुई इस चिकित्सा पद्धति को लेकर दुनियाभर में नये सिरे से रुचि पैदा हो रही है। आयुर्वेद के सिद्धांतो को वैज्ञानिक कसौटी पर परखने और प्रभावी हर्बल दवाओं के विकास का मार्ग प्रशस्त करने के उद्देश्य से भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली और अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान द्वारा एक संयुक्त पहल की गई है। इसके अंतर्गत दोनों संस्थान मिलकर हर्बल फॉर्मूलेशन्स के चिकित्सीय उपयोग पर अध्ययन करेंगे। इस तरह की सात परियोजनाओं पर संयुक्त रूप से अध्ययन करने के लिए आईआईटी, दिल्ली और अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान के बीच सहमति बनी है।
दोनों संस्थानों के बीच जिन सात परियोजनाओं को लेकर सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए गए हैं, उनमे पाचन तंत्र पर आयुर्वेदिक रसों के प्रभाव का आकलन और ऐसे हर्बल उत्पादों का विकास शामिल है, जो खाना पकाने में प्रयुक्त तेल के पुन: उपयोग के हानिकारक प्रभावों को कम करेंगे। इनमें घाव भरने के लिए ऐसी हर्बल पट्टी के विकास से संबंधित परियोजना भी शामिल है, जो आसानी से वातावरण में अपघटित हो सके। इसके अलावा, तंत्रिका तंत्र पर भ्रामरी प्राणायाम के प्रभावों का अध्ययन और तंत्रिका तंत्र के लगातार कमजोर होने से संबंधित रोगों में आयुर्वेदिक भस्मों के प्रभावों का विश्लेषण भी इन परियोजनाओं का हिस्सा है। इस पहल के अंतर्गत एक ऐसा धूपन-यंत्र भी विकसित किया जाएगा, जो किसी प्रकार के घाव को भरने में सक्षम हो। इसके साथ ही, प्रारंभिक कैंसर का पता लगाने और आयुर्वेदिक दवाओं का स्तन कैंसर पर हो रही प्रतिक्रियों का आकलन भी परियोजनाओं में शामिल है।
इन सभी परियोजनाओं का उद्देश्य आयुर्वेद और प्रौद्योगिकी के तालमेल से प्रभावी परिणामों की पहचान कर उसके उपयोग को साझा करना है। ये सभी परियोजनाएं फिलहाल दो वर्षों तक चलेंगी। इस अवसर पर आईआईटी, दिल्ली के निदेशक प्रोफेसर वी. रामगोपाल राव का कहना है कि प्रौद्योगिकी के साथ पारंपरिक ज्ञान के साथ आने से बेहतर स्वास्थ्य देखभाल विकल्प हमारे सामने आएंगे, जिसके माध्यम से बड़े पैमाने पर समाज को लाभ होने की उम्मीद है। साथ ही, ये परियोजनाएं पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों के विभिन्न रूपों को व्यापक रूप से स्वीकार्य बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान, दिल्ली के निदेशक प्रोफेसर तनुजा नेसारी का कहना है कि इस पहल के अंतर्गत दोनों संस्थानों का उद्देश्य आयुर्वेदिक निदान और रोगों के उपचार के मूल सिद्धांतों की गहरी समझ विकसित करना है, ताकि आयुर्वेदिक प्रक्रियाओं के लिए नवीन उपकरण विकसित किए जा सकें। (इंडिया साइंस वायर)