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भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी पर श्री चन्द्र भगवान का दर्शन वर्जित

गणेशोत्सव के पावन अवसर पर दिव्य शांति परिवार और ध्यान गुरु रघुनाथ गुरुजी (Spiritual Researcher) ने भाविकों के समक्ष भगवान गणेश की आराधना का आध्यात्मिक, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्त्व मांडला।

ध्यान गुरु रघुनाथ गुरुजी ने कहा कि श्री गणेश भगवान को विघ्नहर्ता, मंगलकर्ता और बुद्धिदाता माना जाता है। वे केवल पूजनीय देवता ही नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देने वाले प्रेरणास्रोत भी हैं। दूसरी ओर श्री चन्द्र भगवान मन और भावनाओं के प्रतीक हैं। धार्मिक कथाओं के अनुसार, भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी की रात को श्री गणेशजी द्वारा दिए गए शाप के कारण इस दिन चन्द्र दर्शन वर्जित माने जाते हैं।

गुरुजी ने इस परंपरा के पीछे छिपे वैज्ञानिक कारणों को भी स्पष्ट किया। उनके अनुसार वर्षा ऋतु में नमी और बादलों की अधिकता के कारण चन्द्रमा की रोशनी से optical illusion (मिथ्या दोष) उत्पन्न हो सकता है, जिससे मानसिक भ्रम की स्थिति बनती है। साथ ही इस मौसम में मच्छर, कीट और रोगों का प्रकोप बढ़ने से रात में बाहर निकलना स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक हो सकता है। यही कारण है कि पूर्वजों ने इसे धार्मिक परंपरा से जोड़कर समाज को सुरक्षित रखने का उपाय किया।

गणेशोत्सव में ढोल-ताशा, शंखनाद और भजन-कीर्तन का विशेष महत्त्व बताते हुए गुरुजी ने कहा कि सामूहिक ध्वनि-तरंगें वातावरण को शुद्ध करती हैं, सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करती हैं और मानसिक शांति प्रदान करती हैं। सामूहिक भक्ति से समाज में एकता और आनंद का वातावरण निर्मित होता है।

ध्यान गुरु रघुनाथ गुरुजी ने भाविकों से संदेश दिया कि गणेश आराधना केवल भक्ति और आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य, समाज और पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है। मिट्टी की मूर्तियों का प्रयोग, सामूहिक उत्सव और पर्यावरण संरक्षण का संदेश इस पर्व को और अधिक महत्वपूर्ण बनाता है।

अंत में गुरुजी ने कहा कि गणेशोत्सव सुख-शांति, समृद्धि और ज्ञान का पर्व है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, पर्यावरण संतुलन और विश्व-कल्याण का सशक्त संदेश देने वाला उत्सव है।

अंत में गुरुजी ने कहा कि गणेशोत्सव सुख-शांति, समृद्धि और ज्ञान का पर्व है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, पर्यावरण संतुलन और विश्व-कल्याण का सशक्त संदेश देने वाला उत्सव है।

सामूहिक प्रार्थना, जप, नामस्मरण, भजन-कीर्तन और उत्सव मनाते समय वातावरण में दिव्य चैतन्य और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यही कारण है कि हमारे धर्म में प्रत्येक उत्सव को केवल परंपरा नहीं, बल्कि आत्मिक जागृति और आध्यात्मिक उत्कर्ष का विशेष साधन माना गया है।

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