नई दिल्ली: भारत में कैंसर एक बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा है। कैंसर का इलाज तो है लेकिन समय पर कैंसर की पहचान न हो पाने और उपचार में देरी के कारण इस सेमृत्यु के आंकड़ो में भी लगातार वृद्धि हुई है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च (एनआईसीपीआर) के अनुसार प्रतिवर्ष कैंसर के 7 लाख से अधिक नए मामले दर्ज किए जाते हैं और कैंसर के कारण होने वाली मृत्यु का आंकड़ा 5 लाख 50 हजार से भी अधिक हैं। वहीं, कैंसर सें संबंधित 50 प्रतिशत मृत्यु मुख एवं फेंफड़ों के कैंसर और महिलाओं में स्तन कैंसर से होती हैं।
हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर और संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एसपीजीआईएमएस) के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक ऐसा उपकरण विकसित किया है जिसकी मदद से फेफड़ो के कैंसर से जूझ रहे मरीजों के उपचार में मदद मिल सकती है। इस उपकरण को ‘3डी रोबोटिक मोशन फैंटम’ नाम दिया गया है। इसकें माध्यम से फेफड़ो के कैंसर के मरीजों को सटीक और कम मात्रा में भी अधिक प्रभावी रेडिएशन थेरेपी दी जा सकती सकेगी।
दरअसल रेडिएशन के जरिए कैंसर ट्यूमरका उपचार संभव है। लेकिन श्वसन-गति के कारण ऊपरी उदर और छाती के आस-पासकी जगह पर सटीक रेडिएशन देने में प्रायः बाधा आती है। श्वसन गति के कारणरेडिएशन देने के दौरान ट्यूमर के आसपास के क्षेत्र भी अनावश्यक रूप से से प्रभावित होते हैं। इस नयी प्रणाली द्वारा किसी रोगी के फेफड़ों की गति का अनुकरण (सिमुलेशन) करके और फिर रेडिएशन के वितरण को ट्यूमरपर ही केन्द्रित किया जा सकता है ताकि उस पर हलके डोज से भी अधिकतम प्रभाव पढ़ सके। मरीज पर उपयोग करने से पूर्व रेडिएशन की सटीकता एक रोबोटिक फैंटम पर जांचना आवश्यक है।
वैज्ञानिकों ने जो ‘3डी रोबोटिक मोशन फैंटम’ विकसित किया है। इसको इंसान की जगह सीटी स्कैनर के अंदर बेड पर रखा जाता है जोरेडिएशन के समय मरीज के फेफड़ोकी तरह ही गति करता है। इस प्रक्रिया के दौरान मरीज और कर्मचारियों पर न्यूनतम असर के साथ उन्नत 4डी रेडिएशन थेरेपी उपचारों की उच्च गुणवत्ता वाली छवियां प्राप्त होती हैं।
‘3डी रोबोटिक मोशन फैंटम’ उपकरण का एक बड़ा भाग गतिशील प्लेटफार्म है, जिस पर रेडिएशन की डोज मापने वाला उपकरण या तस्वीर की गुणवत्ता सुनिश्चित करने वाली डिवाइस लगाई जा सकती है।यह प्रणालीतीन स्वतंत्र स्टेपर मोटर प्रणालियों के इस्तेमाल से 3डी ट्यूमर मोशन की नकल कर सकता है। इसकोएक बेडपर रखा जाता है, जहां मरीज रेडिएशन थेरेपी के दौरान लेटता है। फैंटम जैसे ही फेफड़ों की गति की नकल करता है, वैसे ही रेडिएशन मशीन से रेडिएशन को गतिशील ट्यूमर पर केंद्रित करने के लिए एक गतिशील या गेटिंग विंडो का इस्तेमाल किया जाता है। फैंटम में लगे डिटेक्टर्स से यह पता लगाने में मदद मिलती है कि ट्यूमर पर रेडिएशन कहां किया गया है।
मेक इन इंडिया पहल के तहत विकसित ‘3डी रोबोटिक मोशन फैंटम’ एक किफायती उपकरणहै। इस उपकरण के जरिए भारतीय चिकित्सकों को जल्द ही कैंसार के मरीज के पेट के ऊपरी हिस्से या वक्ष क्षेत्र (गले के पास) में रेडिएशन में मदद करने के लिए फेफड़ों को गति की नकल करने की सुविधा मिल जाएगी और इस यंत्र के माध्यम से किसी भी मरीज के फेफड़ों की गति को नियंत्रित कर, उस पर नजर रखकर रेडिएशन को ट्यूमर वाली जगह पर केन्द्रितकिया जा सकेगा। इस रोबोट पर इस तरह के प्रयोग कर फिर मरीज पर वही प्रक्रिया दोहरायी जा सकेगी।
उपचार के दौरान डोज के प्रभाव की जांच की जाती है। वर्तमान में, शोधकर्ता प्रणाली की जांच एक फैंटम पर करने में जुटे हैं। इसके पूरा होने के बाद, वे मानव पर इसकी जांच करेंगे। इस प्रकार के रोबोटिक फैंटम के निर्माण का काम भारत में पहली बार हुआ है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के उन्नत तकनीक निर्माण कार्यक्रम की सहायता से विकसित और ‘मेक इन इंडिया’ पहल के साथ जुड़ी इस तकनीक को आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर आशीष दत्ता और एसजीपीजीआइ के प्रोफेसर केजे मारियादास ने साथ मिलकर विकसित किया है। (इंडिया साइंस वायर)