नई दिल्ली: इंडियन सार्स-सीओवी-2 जीनोमिक कंसोर्टिया (आईएनएसओसीओजी) के नेतृत्व में कोरोना वायरस के प्रकार से जुड़े पहलुओं पर पैनी नज़र रखने के लिए चार शहरों – बंगलुरु, हैदराबाद, नई दिल्ली और पुणे को मिलाकर एक निगरानी समूह (कंसोर्टियम) का गठन किया गया है। समूह का गठन रॉकफेलर फाउंडेशन के समर्थन और सीड फंडिंग से किया गया है।
इस पहल के अंतर्गत महामारी विज्ञान से संबंधित आयामों और चिकित्सीय परिणामोंकेआधारपर वायरस के नये रूप के उभरने को ट्रैक किया जाएगा। कंसोर्टियम का उद्देश्य महामारी और चिकित्सीय डेटा के आधार पर लक्षित नमूना रणनीति विकसित करना है। गहन पर्यावरणीय निगरानी और उन्नत कम्प्यूटेशनल तकनीकों के साथकंसोर्टियम की कोशिश वास्तविक समय में निगरानी और महामारी के लिए क्षमताओं का निर्माण करने की भी रहेगी।
निगरानी समूहका नेतृत्व सीएसआईआर-कोशकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सीएसआईआर-सीसीएमबी), हैदराबाद, कर रहा है। वर्तमान में, इसके तीन अन्य शहरों में विभिन्न भागीदार हैं, जिनमें बेंगलुरु स्थित तीन संस्थान – टीआईएफआर-नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज(एनसीबीएस), डीबीटी-इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल साइंस ऐंड रिजेनेरेटिव मेडिसिन (इनस्टेम)एवं नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड न्यूरोसाइंसेज (निमहांस); नई दिल्ली स्थित सीएसआईआर-जिनोमिकी और समवेत जीव विज्ञान संस्थान (आईजीआईबी); औरपुणेनॉलेज क्लस्टर, भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर)-पुणे और सीएसआईआर-नेशनल केमिकल लेबोरेटरी (एनसीएल), पुणे शामिल हैं।
यह कंसोर्टियम स्थानीय प्रशासन, अस्पतालों और चिकित्सकों के साथ मिलकर काम करेगा। इंडियन सार्स-सीओवी-2 जीनोमिक कंसोर्टिया (आईएनएसओसीओजी) के सहयोग से, समूह का दूरगामी लक्ष्य इसको भारत के अन्य रणनीतिक स्थानों तक विस्तारित कर इसे एक राष्ट्रीय प्रयास बनाना है।
इस समूह से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है, “हमारा उद्देश्य वायरस के व्यापक रूप से फैलने और उसके प्रकोप का कारण बनने से पहले चिंताजनक वेरिएंट की पहचान करना, और उसकी रोकथाम के लिए प्रभावी रणनीतियों और क्षमताओं को विकसित करना है। यह पहल नैदानिक लक्षणोंऔररोगकीगंभीरता की संबद्धता का पता लगाने में भी मदद करेगी।”
सीएसआईआर-सीसीएमबी के निदेशक डॉ विनय नंदीकूरी कहते हैं, “सभी सहयोगी संस्थान देश में शुरुआत से ही कोविड-19 के विरुद्ध लड़ रहे हैं। यह महत्वपूर्ण साझेदारी उनकी क्षमताओं का एकीकृत रूप से बेहतर उपयोग करने में मददगार होगी।” (इंडिया साइंस वायर)