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भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के पुरोधा: प्रोफेसर उडुपी रामचंद्र राव

Pioneer of Indian Space Program: Professor Udupi Ramchandra Rao

नई दिल्ली: भारत में अंतरिक्ष विज्ञान ने बहुत प्रगति कर ली है। आज भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम अपनी उपलब्धियों से दुनिया भर के लिए एक मिसाल बन चुका है।भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान की इस उड़ान में अनेक दिग्गज अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भूमिका रहीहै। इस कड़ी में सबसे महत्वपूर्ण नाम है प्रोफेसर उडुपी रामचंद्र राव का। भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान की विकास यात्रा में जिन क्षेत्रों का निर्णायक योगदान रहा, उनमें से अधिकांश का सरोकार उसी तकनीक से रहा है, जिस पर प्रोफेसर यूआर राव जीवनपर्यंत काम करते रहे। आज देश में सूचना प्रौद्योगिकी द्वारा जो क्रांति आकार ले रही है हम उसकी बात करें या फिर रिमोट सेंसिंग, टेलीमेडिसिन या टेली एजुकेशन, सब में प्रो राव के काम की छाप दिखती है।

प्रोफेसरराव का जन्म कर्नाटक के अडामारू में 10 मार्च 1932 को हुआ था। वह एक साधारण परिवार से ही संबंध रखते थे, परंतु अपने कठिन परिश्रम और विज्ञान के प्रति समर्पण ने उन्हें एक असाधारण व्यक्तित्व बना दिया। सफलता के नित नए सोपान चढ़ते हुए जहां उन्होंने प्रतिष्ठित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया तो वहीं देश के अंतरिक्ष सचिव के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं जो विभाग सीधे प्रधानमंत्री के नेतृत्व में काम करता है।

प्रोफेसरराव ने 1960 में अपने करियर की शुरुआत की और उसके बाद से भारत में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विकास और संचार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। छुपे हुएप्राकृतिक संसाधनों की खोजकरने में उनकी दूर-संवेदी तकनीकें बहुत उपयोगी सिद्ध हुईं। भारत की अंतरिक्ष और उपग्रह क्षमताओं के निर्माण तथा देश के विकास में उनके अनुप्रयोगों का श्रेय भीप्रोफेसर राव को दिया जाता है। उन्होंने 1972 में भारत में उपग्रह प्रौद्योगिकी का आगाज कर अपनी मेहनत से उसे एक नया आयाम प्रदान किया। प्रोफेसरराव के कुशल नेतृत्व में ही1975 में पहले भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट से लेकर 20 से अधिक उपग्रहों को डिजाइन किया गया, तैयार किया गया और अंतरिक्ष में प्रक्षेपित भी किया गया। भारत में प्रक्षेपास्त्र प्रौद्योगिकी के विकास को भी प्रोफेसरराव ने एक नई दिशा दी। यह उनके प्रयासों का ही परिणाम रहा कि 1992 में एएसएलवी का सफल प्रक्षेपण संभव हो सका। प्रसारण, शिक्षा, मौसम विज्ञान, सुदूर संवेदी तंत्र और आपदा चेतावनी के क्षेत्रों में अंतरिक्ष तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने में राव का योगदान अतुलनीय है।

प्रोफेसर राव को अंतरराष्ट्रीय एस्ट्रोनॉटिकल फेडरेशन ने प्रतिष्ठित‘द 2016 आईएएफ हॉल ऑफ फेम’ में शामिल किया था। वहीं वर्ष 2013 में सोसायटी ऑफ सेटेलाइट प्रोफेशनल्स इंटरनेशनल ने प्रोफेसरराव को सेटेलाइट हॉल ऑफ फेम, वाशिंगटन का हिस्सा बनाया। भौतिक विज्ञान प्रयोगशाला (अहमदाबाद) की संचालन परिषद के अध्यक्ष रहे प्रोफेसरराव अंतरराष्ट्रीय तौर भी पर बहुत विख्यात रहे। अंतरिक्ष विज्ञान में अहम योगदान के लिए भारत सरकार ने प्रोफेसरयूआर राव को 1976 में तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया। वर्ष 2017 में उन्हें देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण दिया गया।

देश के मूर्धन्य वैज्ञानिकों में से एक रहे प्रोफेसर राव यदि जीवित होते तो 10 मार्च,2021 को अपना 89वां जन्मदिन मनाते। आज वह भले ही हमारे बीच में न हों, लेकिन विज्ञान के क्षेत्र में अपने अतुलनीय योगदान से उन्होंने एक ऐसी समृद्ध विरासत छोड़ी है, जिसे उनके अनुयायी और समृद्ध करके उनकी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। (इंडिया साइंस वायर)

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