नई दिल्ली : जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनियाभर में हो रहे विभिन्न शोध-अध्ययनों में कई चेतावनी भरी जानकारियां सामने आ रही हैं। एक नये शोध में पता चला है कि ध्रुवों और पर्वतीय क्षेत्रों में जमी बर्फ के पिघलने की दर तेजी से बढ़ी है। शोधकर्ताओं का कहना है कि वर्ष 1990 के दशक के मध्य की तुलना में पृथ्वी की बर्फ आज कहीं अधिक तेजी से पिघल रही है। ब्रिटेन की एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी, लीड्स यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं के इस संयुक्त अध्ययन के मुताबिक पिछले करीब 23 वर्षों में पृथ्वी ने अभूतपूर्व मात्रा में बर्फ गंवायी है। इस कारण, मौजूदा हालात को जलवायु परिवर्तन की सबसे खराब स्थिति के रूप में देखा जा रहा है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि वर्ष 1994 से लेकर वर्ष 2017 के बीच पृथ्वी पर जमी बर्फ की चादर तेजी से सिकुड़ गई है। इस दौरान पृथ्वी पर जमी करीब 280 खरब टन बर्फ पिघल गई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि दुनिया के ध्रुवों और पहाड़ी इलाकों में बर्फ पिघलने की दर पिछले तीन दशकों में बहुत ज्यादा बढ़ी है। अध्ययन के अनुसार, वर्ष 1990 के दशक में प्रति वर्ष बर्फ पिघलने की दर 8 खरब टन थी, जो वर्ष 2017 तक बढ़कर 12 खरब टन प्रतिवर्ष तक पहुँच गई थी। भारी मात्रा में पिघलती बर्फ से समुद्री जल-स्तर में खतरनाक वृद्धि देखी जा रही है। इस स्थिति का सबसे बुरा असर पूरी दुनिया में तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर पड़ेगा। उपग्रह चित्रों के विश्लेषण से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं।
लीड्स यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता डॉ इसोबेल लॉरेंस के मुताबिक, “महासागरों की बर्फ सिकुड़ने के साथ महासागर और वायुमंडल विपुल मात्रा में सौर ऊर्जा अवशोषित करने लगते हैं। इससे ध्रुवीय क्षेत्र तेजी से गर्म होने लगता है, और वहाँ जमी बर्फ पिघलने की दर बढ़ने लगती है।
इस अध्ययन के दौरान दुनियाभर के विभिन्न पर्वतों के ग्लेशियर, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की ध्रुवीय बर्फ की चादरें, अंटार्कटिका के आसपास तैरने वाली बर्फ की चट्टानों और आर्कटिक एवं दक्षिणी महासागरों में मिलने वाली समुद्री बर्फ का सर्वेक्षण किया गया है। यह अध्ययन यूरोपियन जियोसाइंसेज यूनियन की शोध पत्रिका द क्रायोस्फीयर में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं के अनुसार, पिछले तीन दशकों में सबसे ज्यादा बर्फ दोनों ध्रुवीय क्षेत्रों आर्कटिक और अंटार्कटिका में पिघली है। उनका कहना है कि इस तरह के नुकसान का सीधे तौर पर समुद्र का जलस्तर बढ़ाने में योगदान नहीं है, पर इस घटनाक्रम से बर्फ से सूर्य की रोशनी प्रतिबिंबित होने की प्रक्रिया बाधित होती है, जो परोक्ष रूप-से समुद्र तल बढ़ाने में भूमिका निभाती है।
लीड्स यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ पोलर ऑब्जर्वेशन ऐंड मॉडलिंग के शोधकर्ता डॉ थॉमस स्लैटर ने कहा है कि “ध्रुवों, महासागरों एवं दुनिया के विभिन्न हिस्सों के पर्वतीय क्षेत्रों पर जमी बर्फ की परत, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) द्वारा निर्धारित ग्लोबल वार्मिंग के पैमाने पर सबसे बदतर स्थिति में पहुँच गई है। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।” (इंडिया साइंस वायर)