नई दिल्ली: कोशिका झिल्ली पर मौजूद रिसेप्टर प्रोटीन के माध्यम से कोशिकाएं एक दूसरे के साथ संपर्क करती हैं। कई दवाएं कोशिकाओं के कार्य और शरीर क्रिया-विज्ञान को बदलने के लिए इन रिसेप्टर प्रोटीनों को लक्षित करती हैं। हालांकि, सीएसआईआर-कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र (सीसीएमबी) के प्रोफेसर अमिताभ चट्टोपाध्याय की प्रयोगशाला में किए गए नये अध्ययन में पता चला है कि ड्रग डिजाइनिंग में सिर्फ रिसेप्टर प्रोटीन ही नहीं, बल्कि उसके आसपास के लिपिड परिवेश की भूमिका भी होती है।
सीएसआईआर-सीसीएमबी के शोधकर्ताओं ने पहले पता लगाया था कि सेरोटोनिन रिसेप्टर्स अपने आसपास के कोलेस्ट्रॉल के प्रति संवेदनशील होते हैं। शोध पत्रिका साइंस एडवांस में प्रकाशित नये अध्ययन में उन्होंने मानव सेरोटोनिन 1ए रिसेप्टर पर एक सेंसर क्षेत्र की पहचान की है, जो कोलेस्ट्रॉल का पता लगा सकता है। उन्होंने रिसेप्टर में विशिष्ट क्षेत्रों का पता लगाया है, जिसे CRAC मॉटिफ्स (नूमने)कहा जाता है। यह माना जाता है कि ये कोलेस्ट्रॉल के साथ परस्पर अंत: क्रिया करते हैं। शोधकर्ताओं ने सेरोटोनिन1ए रिसेप्टर के सीआरएसी नमूनों में मौजूद विशिष्ट अमीनो एसिड को सावधानीपूर्वक बदल दिया, और रिसेप्टर के कोलेस्ट्रॉल-संवेदनशील कार्य के लिए जिम्मेदार एक विशेष अमीनो एसिड की पहचान की ।
शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर आधारित आणविक गतिविज्ञान अनुकरण (molecular dynamics simulations) के माध्यम से प्रोटीन-कोलेस्ट्रॉल इंटरैक्शन का अनुमान लगाने के लिए स्पेन के बार्सिलोना स्थित पोम्पेयू फैबरा यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल डेल मार मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ. जन सेलेंट और उनकी टीम के साथ संयुक्त अध्ययन किया है। इससे उन्हें यह अनुमान लगाने में मदद मिली है कि सीआरएसी मोटिफ पर विशिष्ट अमीनो एसिड कैसे रिसेप्टर को उसके आसपास के कुछ क्षेत्रों में आणविक गति को नियंत्रित करके कोलेस्ट्रॉल के स्तर में बदलाव को समझने में सक्षम बनाता है।
प्रोफेसर चट्टोपाध्याय ने स्पष्ट किया कि “यह निष्कर्ष महत्वपूर्ण हैं क्योंकि बढ़ती उम्र और बीमारी की कई स्थितियों में हमारी कोशिकाओं में कोलेस्ट्रॉल का स्तर बदल जाता है। हमें विश्वास है कि हमारा काम बेहतर दवाओं को विकसित करने में मदद करेगा, जो न केवल ड्रग टार्गेट के रूप में रिसेप्टर, बल्कि लिपिड परिवेश, को भी ध्यान में रखते हैं, जहाँ रिसेप्टर मौजूद रहते है।”
सीसीएमबी के निदेशक, डॉ. विनय नंदिकूरी ने कहा है कि “सीसीएमबी में संरचनात्मक जीव-विज्ञान में हमारी विशेषज्ञता कोशिकाओं और उनके कार्यों की प्रकृति समझने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यह न केवल जीवित कोशिकाओं के विस्तृत रूप को स्पष्ट करता है, बल्कि चिकित्सीय विकास में भी अपार संभावनाओं को दर्शाता है।” (इंडिया साइंस वायर)