कोविड-19 संक्रमण कितना गंभीर, बताएगी नई तकनीक

नई दिल्ली, 23 सितंबर: कोविड-19 संक्रमण कितना गंभीर है यह पता चल जाए तो प्रभावी उपचार में मदद मिल सकती है। कोविड -19 की जांच के लिए उपयोग होने वाला आरटी-पीसीआर टेस्ट यहतो बता सकता है कि कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित है या नहीं। पर, यह परीक्षण संक्रमण की गंभीरता को निर्धारित नहीं कर सकता। भारतीय शोधकर्ताओं ने अब एक नये अध्ययन में यह पाया है कि किसी व्यक्ति के नासॉफिरिन्जियल नमूनों में विशिष्ट प्रोटीन का स्तर, संक्रमण की निम्न और उच्च गंभीरता के बीच अंतर कर सकता है।शोधकर्ताओं का कहना है कि संक्रमण की गंभीरता की जानकारी अस्पतालों को समय पर स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों को व्यवस्थित करने में मदद करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि जिन लोगों को गंभीर देखभाल की आवश्यकता होती है, उन्हें आसानी से पहचाना जा सके।

इस अध्ययन में, कोविड -19 संक्रमण की तीव्रता को निर्धारित करने के लिए शोधकर्ताओं ने मास स्पेक्ट्रोमेट्री का उपयोग किया है। आमतौर पर, आरटी-पीसीआर परीक्षण में वायरस के न्यूक्लिक एसिड का पता लगाने के लिए रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन-पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन का उपयोग होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि संक्रमण के विभिन्न चरणों में जारी विशिष्ट वायरल या होस्ट प्रोटीन से कई महत्वपूर्ण तथ्य जुड़े हुए हैं। वे बताते हैं कि किस चरण में कौन-सा प्रोटीन निकलता है, इसकी पहचान करके रोग की गंभीरता का पता लगा सकते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार, मास स्पेक्ट्रोमेट्री एक ऐसा उपकरण है, जो यह पता लगाने में सक्षम है कि क्या कोई विशेष प्रोटीन नमूने में मौजूद है, और किसी नमूने में उसकी मात्रा कितने प्रतिशत है।नासॉफिरिन्जियल स्वैब, नैदानिक ​​परीक्षण के लिएनाक और गले से नमूना एकत्र करने की विधि है।इस तरह प्राप्त नमूनों का विश्लेषण रोग के लिए जिम्मेदार सूक्ष्मजीवों या अन्य नैदानिक मार्करों की उपस्थिति का पता लगाने के लिए किया जाता है।

आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर संजीव श्रीवास्तवके नेतृत्व में यह अध्ययन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), बॉम्बे और कस्तूरबा अस्पताल, मुंबई के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।

शोधकर्ता यह जानना चाहते थे कि क्या मास स्पेक्ट्रोमेट्री का उपयोग कोविड -19 संक्रमण की पुष्टि के लिए प्राथमिक नैदानिक ​​​​परीक्षणकेरूपमें भी हो सकता है? यह जानना इसलिए आवश्यक था, क्योंकिकोविड-19 कीगंभीरताकापतालगानेऔरसंक्रमण का पता लगाने केलिएअलग-अलगपरीक्षणों का उपयोग चिकित्सा कर्मचारियों के काम को बढ़ाने वाली गतिविधि साबित होगी। अध्ययन में, रोगियों के तीन समूहों से नासॉफिरिन्जियल नमूने एकत्र किए गए हैं; जिनमेंकोविड-19 पॉजिटिव, कोविड-19 निगेटिव और कोविड-19 से उबर चुके लोग शामिल हैं।

शोधकर्ताओं ने 25 प्रोटीनों की पहचान की है, जो कोविड-19 पॉजिटिव रोगियों में अधिक मात्रा में मौजूद थे। उन्होंने मास स्पेक्ट्रोमेट्री तकनीक का उपयोग करके 25 प्रोटीनों की पहचान की है, और उनकी मात्रा का आकलन किया है, जिसे सेलेक्टेड रिएक्शन मॉनिटरिंग (SRM) परीक्षण कहा जाता है। मास स्पेक्ट्रोमेट्री किसी भी बायो-मॉलिक्यूल की पहचान कर सकती है। जबकि, एसआरएम परीक्षण सिर्फ प्रोटीन पर लक्षित होता है। इसलिए, प्रोटीन की पहचान और उसकी मात्रा के मापन के लिए एसआरएम अत्यधिक संवेदनशीलविधि है।

इन 25 प्रोटीनों का उपयोग संभावित रूप से यह निर्धारित करने के लिए किया जा सकता है कि कोई नमूना कोविड पॉजिटिव है, या फिर वह कोविड निगेटिव है। पहचाने गए प्रोटीन के कटऑफ प्रतिशत को निर्धारित करने के लिए एक बड़े समूह पर एक मात्रात्मक नैदानिक ​​अध्ययनकिएजानेकीआवश्यकताहै।यहमासस्पेक्ट्रोमेट्रीकोनैदानिकपरीक्षणकेरूपमेंउपयोगकरनेमेंसक्षमबनाएगा।

शोधकर्ताओं ने कोविड -19 से उबर चुके लोगों के नमूनों का उपयोग यह पता लगाने के लिए किया है कि क्या ये प्रोटीन संक्रमण की गंभीरता या फिर उससे उबरने की दिशा में प्रगति का संकेत देता है!

शोधकर्ताओं का प्रयास ऐसे प्रोटीन को चिह्नित करना था, जो गंभीर और गैर-गंभीर मामलों को अलग कर सके। कोविड-19 के 24 पॉजिटिव नमूनों में 11 गैर-गंभीर और 13 गंभीर रोगी नमूने शामिल थे। यह माना जाता है कि यदि रोगी तीव्र श्वसन संकट सिंड्रोम अथवा निमोनिया से पीड़ित हो, या फिर उसका ऑक्सीजन संतृप्ति स्तर 87% से कम होता है, तो वह गंभीर संक्रमण से ग्रस्त हो सकता है। शोधकर्ताओं ने गंभीर और गैर-गंभीर समूहों के नमूनों का अलग-अलग विश्लेषण किया है। उन्होंने छह महत्वपूर्ण प्रोटीन की पहचान की है, जो गैर-गंभीर और गंभीर कोविड-19 रोगी के बीच अंतर कर सकते हैं।आईआईटी, बॉम्बे द्वारा जारी एक वक्तव्य में यह जानकारी दी गई है।

शोधकर्ता यह भी जाँचना चाहते थे कि क्या नई दवा के डिजाइन की प्रतीक्षा करने के बजाय किसी मौजूदा दवा का उपयोग पहचाने गए प्रोटीन को लक्षित करने के लिए किया जा सकता है? इसके लिए, उन्होंने संक्रमित मेजबान में परिवर्तित सेलुलर प्रक्रियाओं में शामिल प्रोटीन के लिए वर्तमान दवाओं (29 एफडीए-अनुमोदित, नौ क्लीनिकल, और 20 पूर्व-क्लीनिकल ​​परीक्षणदवाओं) कीबाध्यकारीदक्षताकीजाँचकीहै।ऐसाकरके, शोधकर्ताओं ने कई ड्रग उम्मीदवारों और छोटे अणुओं की पहचान की है, जो संभावित रूप से महत्वपूर्ण प्रोटीन को बांध और बाधित कर सकते हैं।

शोध टीम की एक सदस्य डॉ कृति बताती हैं कि “दवाओं का विकास एक महंगी और समय लेने वाली प्रक्रिया है। कोविड-19 से निपटने के लिए एक वैकल्पिक चिकित्सीय दृष्टिकोण खोजना महत्वपूर्ण है।” “इनमें से अधिकतर दवाएं एफडीए द्वारा अनुमोदित हैं और बीमारियों के अन्य समूहों का मुकाबला करने के लिए उपयोग की जा रही हैं। इस प्रकार, इन दवाओं का वैकल्पिक उपयोग सुरक्षित रूप से हो सकता है।”

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), बॉम्बे के अनुदान पर आधारितयह अध्ययन शोध पत्रिका आईसाइंस में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)

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