ध्यानगुरु रघुनाथ येमूल गुरुजी की दृष्टि से आषाढ़ की यात्राएँ : भक्ति, ऊर्जा और पर्यावरण का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक समन्वय

आषाढ़ की पालखी और जगन्नाथ रथ यात्रा: गोवर्धन यात्रा, कांवड़ यात्रा और ओंकारेश्वर यात्रा के माध्यम से आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और पर्यावरणीय संनाद का अनूठा संगम

जैसे ही मानसून भारत भूमि पर जीवनदायी ऊर्जा के साथ उतरता है, वैसे ही आषाढ़ (जून-जुलाई) का पवित्र महीना देश की आध्यात्मिक धड़कन बन जाता है। महाराष्ट्र की पालखी वारी और ओडिशा की जगन्नाथ रथ यात्रा जैसी दो भव्य यात्राएँ इस मास को अनुपम गरिमा प्रदान करती हैं। प्रसिद्ध ध्यान साधक, आध्यात्मिक शोधकर्ता ध्यानगुरु रघुनाथ येमूल गुरुजी इन प्राचीन परंपराओं के गूढ़ और बहुस्तरीय महत्व को आधुनिक विज्ञान, समग्र चिकित्सा और पर्यावरणीय संतुलन के दृष्टिकोण से प्रस्तुत करते हैं।

इस अवसर पर ध्यानगुरु रघुनाथ गुरुजी कहते हैं, “आषाढ़ की यात्राएँ केवल श्रद्धा का प्रदर्शन नहीं, बल्कि जीवंत उपचार प्रणाली हैं, जो मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा को प्रकृति की लय से समरस करती हैं। जब हजारों लोग एक साथ भक्ति में चलते हैं, तो वे ऐसी शुद्ध सामूहिक ऊर्जा उत्पन्न करते हैं जो आत्मा के साथ-साथ भूमि, वायुमंडल और हमारे चारों ओर की सूक्ष्म तरंगों को भी शुद्ध करती है। ये परंपराएँ भारत का जीवंत विज्ञान हैं, जहाँ आध्यात्मिकता, ऋतु ज्ञान और आंतरिक परिवर्तन एक साथ, एक पवित्र कदम के रूप में आगे बढ़ते हैं।”

आषाढ़ी एकादशी पर समापन वाली ये यात्राएँ मानसून की शुरुआत में होती हैं — जब पृथ्वी की ऊर्जा चरम पर होती है, नदियाँ उफान पर होती हैं और प्रकृति जीवन से भरपूर होती है। आयुर्वेद और प्राचीन भारतीय परंपराओं के अनुसार यह समय ब्रह्मांडीय और पर्यावरणीय ऊर्जा को आत्मसात करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

ध्यानगुरु गुरुजी बताते हैं कि बारिश के साथ नंगे पाँव चलना केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी अत्यंत प्रभावशाली है। हार्टमैथ इंस्टिट्यूट और न्यूरोसाइंटिस्ट डॉ. एंड्र्यू न्यूबर्ग के शोधों से यह प्रमाणित होता है कि सामूहिक भक्ति में चलना विद्युत चुंबकीय संतुलन उत्पन्न करता है, तनाव घटाता है और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। साथ ही, नंगे पाँव चलने से शरीर के 60 से अधिक एक्यूप्रेशर बिंदु सक्रिय होते हैं, जो अंगों को नवजीवन प्रदान करते हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।

इन यात्राओं का महत्व केवल व्यक्तिगत स्तर पर नहीं, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय स्तर पर भी है। लाखों लोग जब पैदल चलते हैं, तो वाहन-प्रदूषण घटता है और मनुष्य व प्रकृति के बीच का पवित्र संबंध और भी प्रगाढ़ होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और आयुर्वेद के अनुसार, बारिश में चलना लसीका तंत्र (lymphatic system), प्रतिरक्षा तंत्र और तंत्रिका संतुलन को सक्रिय करता है।

स्कंद पुराण और नाथ संप्रदाय जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी इन यात्राओं की आध्यात्मिक और शारीरिक शुद्धिकरण शक्ति का उल्लेख मिलता है। आज यही प्राचीन ज्ञान आधुनिक अनुसंधान संस्थानों जैसे IIT खड़गपुर और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल द्वारा भी प्रमाणित किया जा रहा है।

ध्यानगुरु रघुनाथ येमूल गुरुजी का यह संदेश 21वीं सदी में इन प्राचीन आध्यात्मिक परंपराओं को नई प्रासंगिकता देता है। आज के समय में, जब विश्व असंतुलन, मानसिक अलगाव और पारिस्थितिक संकट से जूझ रहा है, ये सामूहिक यात्राएँ सामूहिक चेतना, भावनात्मक उपचार और पर्यावरणीय पुनर्स्थापन की दिशा में एक कदम हैं।

इस आषाढ़ में ध्यानगुरु रघुनाथ गुरुजी की शिक्षाएँ हमें याद दिलाती हैं कि मिलकर भक्ति में चलना केवल ईश्वर को अर्पण नहीं, बल्कि संतुलन, समरसता और समग्र स्वास्थ्य की ओर लौटने की एक यात्रा है।

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