अपनी गौशाला में गायों को खिलाने में मशक्कत कर रही जर्मन महिला की मदद के लिए आगे आया डोनेटकार्ट

  • अपनी गौशाला में गायों को खिलाने में मशक्कत कर रही जर्मन महिला को मिली क्राउड-फंडिंग से भारी मदद
  • जर्मन महिला को भारतीय जनसहयोग प्लेटफार्म पर मिली 1 करोड़ की जनसहयोग धनराशि
  • डोनेटकार्ट ने मथुरा में गौशाला चलाने वाली जर्मन महिला के लिए 1 करोड़ रुपये जुटाने में की मदद
  • मथुरा में गौशाला चलाने वाली जर्मन महिला के लिए डोनेटकार्ट पर जुटाई गई 1 करोड़ से ज्यादा की धनराशि

जर्मन महिला पर्यटक फ्रेडरिक ब्रूनिंग 40 साल पहले भारत घूमने के लिए आई थीं, जो देश की अध्यात्मिक विरासत और परंपरा से बंधकर यहीं रह गईं। वो जीवन के एकमात्र उद्देश्य और सही रास्ते की खोज के लिए यहाँ आईं और उन्होंने यहीं पर अध्यात्मिक जीवन बिताना शुरू कर दिया। दीक्षा लेने के बाद, फ्रेडरिक सुदेवी माताजी के नाम से पहचाने जाने लगी। उन्हें यहां जो कुछ भी मिला, जो भी सीखा, उसे उन्होंने अपनी जीवनशैली का हिस्सा बना लिया और तब से भारत ही उनका अपना देश बन गया है।

यहाँ, सुदेवी जी को कुछ ऐसा मिला जो उनके लिए बहुत ही खास है, वो है गायों से उनका लगाव और  रिश्ता। जब एक बार उन्होंने एक घायल बछड़े को मथुरा के आसपास देखा, तो उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। बछड़े का पैर टूटा हुआ था और धूल-मिट्टी ने घाव के ऊपर एक मोटी, केक जैसी परत बना दी थी।

खुले घाव पर कीड़े दावत उड़ा रहे थें, जिन्होंने उसके आधे शरीर को ढक रखा था। बछड़े की दुर्दशा देखकर सुदेवी जी का दिल पसीज उठा। उसे वो अपने घर ले गईं और उसकी जान बचाई। बस यहीं से उनके जीवन का मकसद उन्हें मिल गया और  इस  सफर की शुरुआत हुई।  आज उनके पास 2500 से ज्यादा गायें हैं, जिनका ख़्याल, वो राधा सुरभि गौशाला में रखती हैं।

बेजुबान जानवरों के अधिकारों की रक्षा के लिए सुदेवी जी के अथक प्रयासों को देखते हुए 2019 में उन्हें प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाजा गया।

उनकी गौशाला की लगभग आधी गायें स्थायी रूप से विकलाँग हैं। वे उन सबको एक सुरक्षित और प्यार भरा  घर दे रही हैं। हर गाय, बछड़े और सांड का नाम और एक पहचान है और वे सभी सुदेवी माताजी के दिल में एक ख़ास जगह रखते हैं। हालाँकि चुनौतियां  इस  यात्रा में भी कम नहीं हैं। सर्वव्यापी महामारी की वजह से सुदेवी जी को अपनी गायों को खिलाने में और उनकी देखभाल करने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। खाने के हर एक दाने और दवाई के लिए मुश्किल होने लगी। लेकिन तभी उम्मीद की किरण बन कर सामने आई – क्राउडफंडिंग यानी जनसहयोग धनराशि।

राधा सुरभि गौशाला की संस्थापक सुदेवी जी बताती हैं, “ये गायें मेरी संतानों के जैसी हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आपकी संतान कष्ट भोग रही है और आप इसके बारे में कुछ भी कर पाने में सक्षम नहीं हैं। मेरा दिल टूट गया क्योंकि मैं उन्हें पीड़ा झेलते हुए देख रही थी लेकिन मैं उसके अलावा और कुछ नहीं कर सकती थी। महामारी ने हालात और ख़राब कर दिये थे और हमारे पास पर्याप्त भोजन और दवाई भी नहीं थे। हर दिन चुनौतीपूर्ण था, हमें ये नहीं पता होता कि आगे क्या होने वाला है!”

हालाँकि एक मकसद  के लिए  जब लोग साथ आ जाएं तो उनमें बहुत ताकत होती है। एक ऑनलाइन सहयोगराशि जुटाने वाले प्लेटफ़ॉर्म डोनेटकार्ट, जो गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) को सहयोगराशि इकठ्ठा करने में मदद करता है, उसकी मदद से सुदेवी जी को एक नई उम्मीद मिली। डोनेटकार्ट पर उनका कैम्पेन जनसहयोगराशि की ताकत और जीवन बदलने वाले प्रभाव का एक बेमिसाल उदाहरण है। 15 दिनों के अंदर ही उन्होंने दुनियाभर के 7500 से ज्यादा मदद करने वालों से 1.2 करोड़ रुपये की लागत का चारा और दवाइयाँ जुटा लीं। डोनेटकार्ट ने पहले भी इस तरह के कार्यों में मदद की है, लेकिन इस कैम्पेन की सफलता लाजवाब है।

Donatekart Came To The Rescue Of German Lady Struggling To Feed Cows In Her Gaushala

डोनेटकार्ट के संस्थापक और सीईओ अनिल कुमार रेड्डी बताते हैं कि “हमने इससे पहले भी 30 से ज्यादा गौशाला की मदद की है और हमें जैसे ही पता चला कि सुदेवी जी को हमारी मदद की जरूरत है तो फिर हमने इसके बारे में दोबारा नहीं सोचा। उस कार्य के प्रति उनका समर्पण दिल को छू लेने वाला था। जब हमने गायों के प्रति उनका प्रेम देखा तो हम जानते थे कि उनके इस नेक काम को सहयोग देने के लिए लोग जरूर आगे आएंगे।”

डोनेटकार्ट ने आजतक 1000 से ज्यादा ऐसे कार्यों के लिए पूरे भारत में काम किया है और उनकी मदद करते हुए, 5 लाख दानकर्ताओं के सहयोग से 75 करोड़ से ज्यादा की सहयोग धनराशि जुटाई है। आप ऐसे ही कई कार्यों में अपना सहयोग देने और इस प्लेटफ़ॉर्म के बारे में ज्यादा जानने के लिए www।donatekart।com पर जा सकते हैं।

“उन सभी दानकर्ताओं का शुक्रिया जिन्होंने आगे आकर मेरे बच्चों को बेहतर जीवन देने के लिए मेरी मदद की। दो हफ़्तों में ही, खाना और दवाईयाँ  आने लगीं। मैं घायलों की देखभाल करने और उन्हें पौष्टिक आहार देने में सक्षम हो पाई। उनके घावों को भरते हुए देखना बहुत सुखद था, वे इससे कहीं बेहतर के हक़दार थें।।। मुझे इतने बड़े सहयोग की उम्मीद नहीं थी, लेकिन तभी इस अद्भुत भूमि पर चमत्कार हुआ।” – सुदेवी जी

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